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रागिनी

जैसे कोई जादू हो गया अचानक से चश्मे का आकार थोड़ा बड़ा हो गया और एक चलचित्र की भांति वो पुरानी यादें दिखाने लगा ये ऐसे था जैसे की एक बड़ा सा टीवी आप देख रहें हों.. वो सभी गौर से उसको देखने लगे..।

उसकी रौशनी में सभी के चेहरे दिख रहें थे,.. और अब सबने एक दुसरे को देखा,

उसके अंदर एक बड़ा ही सुन्दर महल दिखाई दे रहा था महल के परकोटे की दीवारों पर चार जगह बुर्ज बने थे जिस पर खड़े हो कर सैनिक पहरा दे रहे थे और बाहरी आक्रमणकारियों से महल को बचाने के लिए, यह एक बहुत ही मनोहारी महल दिख रहा था लगता ही नही कि ये महल आगे जाकर ऐसे खंडहर में तब्दील हो जाएगा जो अभी उन सबने वर्तमान में देखा था । महल के चारों ओर बाग बगीचे और उनमें खिले गेंदा और गुलाब ,चमेली के फूल उन फूलों की महक वे चारों उस चश्मे मे से भी महसूस कर रहे थे। बगीचे के बीचों बीच एक फव्वारा लगा था । मौसम बहुत सुहावना था एक तरफ एक लाल पत्थर से बनी चबूतरा था जिसपर एक छतरी बनी हुई थी। राजस्थान मे ऐसी छतरियां अभी भी बनी हुई दिख जाती है रहागीरो के आराम के लिए और महलों मे राजा रानी के सुस्ताने के लिए और मौसम का मजा लेने के लिए बनाते थे वो बनाते थे.. उसके अंदर एक बहुत ही सुन्दर रानी तानपूरा लेकर कोई राग या रागिनी आलाप रही थी ऐसा लग रहा था कि ऑंखें बंद कर के वो वो संगीत की साधना कर रही थी।

रानी को देखते ही चारों चिहुंक उठे "रानी नागमति"

वो तस्वीर वाली.. वही है ना? सोहन ने पूछा

हां ये रानी नागमति ही थी जो संगीत साधना कर रही थी। रानी का रूप लावण्य आंखों को चकाचौंध करने वाला था। खंडहर की तस्वीर मे जो दिख रहा था वो तो कुछ भी नही था ये असली की रानी के सामने.. शायद कोई सही तस्वीर चित्रकार सही तस्वीर बना नहीं पाया था । बहुत ही लम्बे लम्बे बाल जिसकी बड़े ही करीने से उसने चोटी गूंथ रखी थी ऊपर बालों मे चमेली के ओर गुलाब के फूल लगा रखे थे चोटी इतनी लम्बी थी कि वो बैठ कर रियाज़ कर रही थी तो चबूतरे से नीचे जा कर बगीचे की घास को छू रही थी।

रानी की आंखें ऐसी थी जैसे दो कमल की कलियां हो रंग तो ऐसा था जैसे दूध मे केसर मिला दी हो रानी चांद का टुकड़ा लग रही थी। किसी भी अच्छे खासे बन्दे की नीयत बदल जाए रानी को देख कर।

तभी तान्या बोली, "बाबा रे। इतनी लम्बी चोटी ये जिस दिन सिर धोती होगी तो इसे बाल सुखाने मे और चोटी बनाने मे पूरा दिन लग जाता होगा।" सोहन ने तान्या को देखा.. सच में तुम लडकियां भी ना, दुसरी लड़की पर बिना कम्मेंट के रह नहीं सकती हो, क्या तुमको बस उसके बाल ही दिखे,

तब तुम लड़के क्या देखते हो तान्या ने पूछा..

हम… मतलब.. सोहन सकपका गया..

तभी शिखर ने कहा, यार ये तो देखो हम कहाँ पर हैं, तुम दोनों हमेशा शुरू हो जाते हो देखो यार आगे,

उन्होंने आगे देखा, रानी बहुत ही सुन्दर राग सुना रही थी, ये ऐसा था के कोई भी सुनकर मदहोश हो जाये..

रानी संगीत साधना मे इतनी मग्न थी कि उसे ये भी भान ना हुआ कि कब बहुत से मोर आकर उसके द्वारा गाये गये राग पर नृत्य करने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई जादुई राग गा रही थी । क्यों कि उससे थोड़ी दूर पर एक दासी फूल बीन रही थी वो फूल ना बीन कर कांटे और पतियों को बीन रही थी कांटों के चुभने के कारण उसके हाथों से खून निकल रहा था और उसे चुभन का अहसास भी नहीं हो रहा था। ऐसे लग रहा था जैसे उसके संगीत मे जादू था

इतने मे रानी ने राग की समाप्ति की तो अचानक से ध्यान दासी की ओर चला गया जब उसने देखा दासी संगीत सुनने में इतनी मग्न हो गयी थी की उसे कांटों की चुभन का भी अहसास नही हुआ तो पहले तो वो मन ही मन मुस्कुरायी कि मेरा संगीत महान् है जो लोग अपनी सुध बुध खो बैठते है फिर एका एक उठी और दासी को बड़े प्यार से अपने पास बुलाया

"क्यों चम्पा राग सुनने मे तुम इतनी मग्न हो गयी हो कि तुम फूल की जगह कांटे बीन रही हो और उनसे जो तुझे खून निकल रहा है उसके दर्द का भी तुझे अहसास नही हो रहा। जाओ ये काम तुम छोड़ दो गंगा को भेज देना वो चुन लेगी फूल ओर तुम अपने घाव की मरहम पट्टी करो जाकर। और हां मेरा पूजा का समय हो गया है सभी तैयारियां हो गयी है क्या सभी सामग्री गंगा ने नीलवर्णी पट (नीला दरवाजा) के अंदर पहुंचा दी होगी।"

"जी रानी सा ! आप की पूजा का सारा ध्यान गंगा बाई सा ही रखती है वो आज थोड़ी तबीयत ठीक नही थी उनकी तो मै फूल चुनने आ गयी। पर आपके संगीत मे तो जादू है मै तो अपनी सुध बुद ही भूल गयी।"

रानी नागमति मन ही मन अपने ऊपर गुमान करते हुए बोली, "बस बस अब बहुत हो गयी प्रशंसा जा मरहम लगा लो घाव पर।"

रानी नागमति राग रागिनीयों मे पारंगत थी उसके संगीत का जादू सब के सिर चढकर बोलता था। क्या राजा क्या दास दासी और क्या प्रजा सभी उसके स़ंगीत के जादू के आगे वशीभूत थे। वह प्रजा पर एक छत्र राज्य करती थी । वह कभी तो मोम की तरह मुलायम बन जाती थी कभी पत्थर की तरह कठोर। जिसका उदाहरण अभी थोड़ी देर पहले उन लोगों शिखर , कपाली, तान्या , सोहन ने देखा था।

तभी कपाली चश्मे से बोला ,"अभी यही विराम लो आगे की कहानी थोड़ी देर मे देखते हैं ।"

शिखर बोला, "तुम ने चश्मे को क्यों रोका ?"

कपाली बोला, "मै एक्सपेरिमेंट करके देख रहा था कि कही यह मेरा वहम तो नही है क्या ये चश्मा सही मे मेरे वश में हुआ के नहीं। और अभी हम जहां बंद है एक बार वहां का जायज़ा भी ले लेते है के वो कौन सी जगह है अब चश्मे की वजह से रौशनी भी हैं दिख रहा हैं थोड़ा ।"

चारों उसी अंधेरे मे उठे और टटोलते हुए पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगे जरा सी रोशनी उस कमरे मे एक छेद से आ रही थी वे उस छेद की और जाने लगे। कपाली ने उस छेद से झांक कर देखा, छेद ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन उसमें से बाहर का सब दिख रहा था,.. कपाली को जंगल का वही दृश्य दिखाई दिया। पर वो थोड़ा बदला बदला सा लग रहा था बहुत ही प्राचीन लग रहा था सब कुछ वहां से महल के परकोटे की दीवार दिख रही थी जिस पर सैनिक बैठा था। ये बिल्कुल वैसा ही था जैसे उन्होंने अभी चश्मे में देखा था, बिल्कुल वहीं दृश्य..

कपाली को झटका सा लगा और वो चीख कर बोला, "अरे यार हम तो पांच सौ साल पीछे भूतकाल में चले गये है। ये देखो जैसे चश्मे मे महल की दीवार पर सैनिक बैठा है वैसे ही इस छेद से बाहर देखने पर वही सैनिक परकोटे के बुर्ज पर बैठा है और वही महल सामने है जैसा हमने अभी देखा ।"

"तुम्हारा क्या मतलब है हम इस चश्मे के माध्यम से टाइम ट्रैवल करके पांच सौ साल पीछे चले गये है।"तान्या अचरज से बोली।

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